धर्म, दर्शन और ज्योतिष की शोधपरक जानकारी - Infotrends

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ग्रह शांति

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ग्रह शांति: ग्रहों की चुनौतियों के लिए शक्तिशाली उपाय और अनुष्ठान

ग्रह शांति-

ग्रहों की चुनौतियों के लिए शक्तिशाली उपाय और अनुष्ठान


ज्योतिष शास्त्र, जिसे वैदिक ज्योतिष के नाम से भी जाना जाता है, एक गहन सिद्धांत पर आधारित है: हमारी जन्म कुंडली में स्थापित नवग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु) हमारे जीवन के हर पहलू - स्वास्थ्य, धन, संबंध, कार्यक्षमता और भविष्य - पर गहरा प्रभाव डालते हैं।

जब ये ग्रह किसी कारणवश "पीड़ा कारक" (अशुभ) या कमजोर स्थिति में होते हैं, तब जीवन में विविध प्रकार की रुकावटें, कष्ट और संकट उत्पन्न हो सकते हैं। इन ग्रहों की अशांति को दूर करने, उनका सामंजस्य स्थापित करने और उनकी अनुकूल शक्तियों का लाभ उठाने के लिए ही "ग्रह शांति" की शास्त्रीय पद्धति का विकास हुआ है।

ग्रह पीड़ा: संकेत और परिणाम

किसी ग्रह की पीड़ा के लक्षण उस ग्रह के प्राकृतिक गुणों, जिस भाव (घर) में वह स्थित है और कुंडली में उसकी स्थिति पर निर्भर करते हैं:

सूर्य (Sun)
  • पितृ संकट
  • स्वाभिमान में कमी
  • हृदय या आँखों के रोग
  • सरकारी विवाद
  • नेतृत्व में कमी
चंद्र (Moon)
  • मानसिक अशांति
  • मन की अस्थिरता
  • माता से जुड़ी समस्याएँ
  • जल संबंधी विकार
  • नींद विकार
मंगल (Mars)
  • रक्त संबंधी रोग
  • चोट-घाव, जलन
  • विवाद, अपराध की प्रवृत्ति
  • भाइयों से तनाव
  • निर्णय लेने में जल्दबाजी
बुध (Mercury)
  • वाणी और बुद्धि संबंधी समस्याएँ
  • व्यापार में नुकसान
  • शिक्षा में रुकावटें
  • याददाश्त की कमी
  • तकनीकी विषयों में कष्ट
गुरु/बृहस्पति (Jupiter)
  • पुत्र संबंधी चिंता
  • धार्मिक भावना में कमी
  • विद्या प्राप्ति में बाधा
  • वैदिक ज्ञान या गुरुओं से जुड़ी समस्याएँ
  • नैतिकता में गिरावट
शुक्र (Venus)
  • विवाह और प्रेम संबंधों में तनाव
  • सुंदरता संबंधी समस्याएँ
  • गुर्दे या मूत्र रोग
  • कला क्षेत्र में असफलता
  • अति-भोग प्रवृत्ति
शनि (Saturn)
  • विपत्ति, देरी से प्राप्ति
  • निराशावादी भाव
  • रोग-शोक
  • व्यापार में घाटा
  • साढ़ेसाती का प्रभाव
राहु (North Node)
  • असामाजिक कार्यों की ओर प्रवृत्ति
  • भय, अपवाद
  • चर्म रोग
  • विदेश संबंधी संकट
  • अचानक दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ
केतु (South Node)
  • निर्दिष्ट दृष्टि की कमी
  • मोक्ष की तीव्र इच्छा
  • पितृ दोष
  • वैदिक विद्या में बाधा
  • आध्यात्मिक संकट

ग्रह शांति: एक व्यापक समाधान

ग्रह शांति केवल एक संकट के बाद की जाने वाली क्रिया नहीं है; बल्कि एक समझदारी भरी प्रक्रिया है जो ग्रहों के साथ एक सात्विक और अनुकूल संबंध स्थापित करती है। इसके प्रमुख अंग हैं:

1. मंत्र जप: शब्दों की दिव्य शक्ति

सिद्धांत: प्रत्येक ग्रह का एक विशेष बीज मंत्र और स्तोत्र होता है। इन शब्दों में उस ग्रह की तात्विक शक्ति समाई होती है। नियमित जप से उत्पन्न होने वाली कंपन (vibration) ग्रह के तत्व से तादात्म्य रखती है और उसका प्रभाव शांत या अनुकूल बनाती है।

विधि: निश्चित संख्या (ग्रह के बीज मंत्र के अनुसार) में माला का प्रयोग करके जप करना। शुद्ध उच्चारण, एकाग्रता और भक्ति भाव अत्यावश्यक है।

मुहूर्त: ग्रह के वार (सूर्य के लिए रविवार), नक्षत्र और होरा का ध्यान रखना उत्तम होता है। ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से पहले) विशेष लाभदायक माना जाता है।

ग्रह अनुसार मंत्र और जप संख्या

ग्रहमंत्रजप संख्या
सूर्यॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः७०००
चंद्रॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमः११०००
मंगलॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः१००००
बुधॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः९०००
गुरुॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः१९०००
शुक्रॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः१६०००
शनिॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः२३०००
राहुॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः१८०००
केतुॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः१७०००

2. हवन/होम: अग्नि के माध्यम से आहुति

सिद्धांत: होम ग्रह शांति का एक अत्यंत प्रभावी और सात्विक उपाय है। यज्ञ वेदी (कुंड) में अग्नि को समर्पित की गई आहुतियाँ (हविस्) ग्रहों को प्रसन्न करने का एक शक्तिशाली माध्यम है। अग्नि सभी वस्तुओं को सूक्ष्म रूप में परिवर्तित करती है और उन्हें ग्रहों तक पहुँचाती है।

विधि: एक निश्चित संख्या (१०८, १००८, आदि) के अनुसार मंत्रों का उच्चारण करते हुए अग्नि में विशेष सामग्रियाँ (घी, तिल, चावल, गुग्गुल, जौ, ग्रह अनुसार विशेष द्रव्य) समर्पित की जाती हैं।

प्रकार: लघु होम (छोटी पद्धति से), महा होम (विस्तृत), ग्रह शांति यज्ञ (सभी ग्रहों के लिए), नवग्रह होम (सभी नौ ग्रहों के लिए)। निपुण पुरोहित द्वारा कराया जाना चाहिए।

3. रत्न धारण: भौमिक तत्वों का संबंध

सिद्धांत: रत्न और उपरत्न अपने भौमिक तत्व और रंग के कारण विशेष ग्रहों के साथ संबंधित होते हैं। उन्हें धारण करने से ग्रह की शक्ति का सही दिशा में प्रवाह होता है और उसका अशुभ प्रभाव कम होता है।

सूर्य

माणिक्य (Ruby) - स्वर्ण में धारण करें

चंद्र

मोती (Pearl) / चंद्रमणि (Moonstone) - चांदी में धारण करें

मंगल

मूँगा (Red Coral) - तांबे में धारण करें

बुध

पन्ना (Emerald) - सोने या पीतल में धारण करें

गुरु

पुखराज (Yellow Sapphire) / टोपाज़ (Topaz) - सोने में धारण करें

शुक्र

हीरा (Diamond) / स्फटिक (Quartz Crystal) - सोने या चांदी में धारण करें

शनि

नीलम (Blue Sapphire) / एमेथिस्ट (Amethyst) - लोहे या चांदी में धारण करें

राहु

गोमेद (Hessonite Garnet) / लहसुनिया (Cat's Eye Chrysoberyl) - सोने या चांदी में धारण करें

केतु

लहसुनिया (Cat's Eye Chrysoberyl) / स्फटिक (Quartz Crystal) - सोने या चांदी में धारण करें

विधि: रत्न को शुद्ध कर, निश्चित मुहूर्त में, सही अंगुली (उंगली) और धातु में जड़ित कर विशेष मंत्र के साथ धारण करना चाहिए। इसके लिए किसी अनुभवी ज्योतिषी का मार्गदर्शन आवश्यक है। गलत रत्न गंभीर नुकसान कर सकता है।

4. दान और सेवा: कर्मिक शुद्धि

सिद्धांत: ग्रह की क्रोधित अवस्था को शांत करने और पुण्य प्राप्ति के लिए दान एक प्रमुख उपाय है। यह ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान करने से उसका प्रसन्निकरण होता है।

सूर्य

गेहूँ, गुड़, लाल वस्त्र, सोना, ताँबा - भास्कर (सूर्य देव) को

चंद्र

चावल, सफेद वस्त्र, चांदी, दूध - शिवजी या चंद्रदेव को

मंगल

मसूर की दाल, गुड़, लाल वस्त्र - भैरव, हनुमानजी को

बुध

मूंग की दाल, हरा रंग - विष्णु भगवान को

गुरु

पीली सरसों, हल्दी, पीले वस्त्र - बृहस्पति देव को

शुक्र

चीनी, सफेद चंदन, सफेद रंग - देवी लक्ष्मी को

शनि

तिल, उड़द, लोहा, नीला रंग - शनि देव, हनुमानजी को

राहु

नीला वस्त्र, उड़द, गोमेद - भैरव को

केतु

खिचड़ी, भूरा रंग, लहसुनिया - गणेशजी को

भाव: दान सहज भाव और निष्काम भाव से करना चाहिए, दिखावे के लिए नहीं।

ग्रह शांति के लिए आवश्यक चिंतनीय बातें

  1. कुंडली विश्लेषण सर्वप्रथम: किसी भी ग्रह शांति अनुष्ठान से पहले किसी योग्यतापूर्ण ज्योतिषी द्वारा अपनी कुंडली का विश्लेषण कराना अत्यावश्यक है।
  2. निपुण पुरोहित/उपासक: होम, यज्ञ या कठिन मंत्र साधना के लिए किसी श्रोत्रिय, शुद्धाचारी और अनुभवी पुरोहित की सेवा लें।
  3. श्रद्धा और निष्ठा: किसी भी उपाय का पूर्ण लाभ केवल तभी प्राप्त होता है जब उसमें पूरा विश्वास, निष्ठा और एकाग्रता हो।
  4. कर्म प्रधान: ग्रह शांति के उपाय कर्मों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने में सहायक होते हैं, लेकिन ये कर्मों के स्थान पर नहीं लेते।
  5. समय और धैर्य: ग्रहों का प्रभाव स्थापित होने में समय लगता है, विशेष कर शनि, राहु और केतु के लिए।
  6. सम्यक दृष्टिकोण: ग्रह शांति को कोई जादू-टोना या औषध नहीं समझना चाहिए। यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है।

शंकाएँ और तथ्य

"सभी ग्रह पीड़ा कारक होते हैं?"

नहीं। हर ग्रह के अपने शुभ और अशुभ प्रभाव होते हैं, जो कुंडली में उनकी स्थिति, बल, संबंध (युति, दृष्टि) और चलाव (दशा) पर निर्भर करते हैं। एक ही ग्रह किसी के लिए राजयोग बना सकता है तो किसी के लिए संकट का कारण भी हो सकता है।

"क्या ग्रह शांति सभी समस्याओं का हल है?"

ग्रह शांति एक प्रभावी साधन है, लेकिन ये सभी जीवन समस्याओं का अकेले हल नहीं है। व्यावहारिक कोशिश, उच्च विचार, व्यवस्थित जीवन और अन्य उपाय भी आवश्यक होते हैं। यह एक सहायक शक्ति प्रदान करती है।

"रत्न धारण खतरनाक है क्या?"

गलत ग्रह के लिए, गलत अंगुली पर, अशुद्ध या नकली रत्न धारण करने से गंभीर नुकसान हो सकता है। इसलिए इसके लिए किसी विश्वसनीय ज्योतिषी का अनुमोदन और मार्गदर्शन आवश्यक है।

अंतिम विचार

ग्रह शांति वैदिक ज्योतिष का एक गंभीर, ज्ञान-प्रद और क्रियात्मक पहलू है। यह व्यक्ति को अपने भीतर छिपी शक्तियों से जोड़ने और ब्रह्मांड में स्थापित ग्रहों की विशाल शक्तियों के साथ एक सामंजस्य स्थापित करने का मार्ग दिखाता है। यह केवल डर या संकट से मुक्ति का साधन नहीं है; बल्कि एक व्यापक जीवन शैली है जो स्वास्थ्य, सम्पन्नता, शांति और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाती है।

लेकिन याद रखिए: सबसे बड़ा उपाय है सच्चाई, कर्मनिष्ठा और मन की शुद्धता। ग्रह उन्हीं पर सदा प्रसन्न रहते हैं।

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