पूर्णिमा व्रत: धर्मशास्त्र से ज्योतिष तक एक सम्पूर्ण विवेचना
पूर्णिमा व्रत हिन्दू धर्म की अत्यन्त पवित्र परम्पराओं में से एक है। यह व्रत न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि ज्योतिष शास्त्र, आयुर्वेद और भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं में गहरी जड़ें रखता है।
प्राचीन काल से लेकर आज तक, पूर्णिमा व्रत का अभ्यास निरन्तर चला आ रहा है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, हर महीने शुक्ल पक्ष की पञ्चदशी तिथि को पूर्णिमा मनाई जाती है जब चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ आकाश में दृष्टिगोचर होता है। इस व्रत का महत्व इसलिए भी अधिक है कि ज्योतिष के अनुसार इस दिन चन्द्रमा अत्यधिक शक्तिशाली होता है और इसकी किरणों से अमृत की वर्षा होती है।
पूर्णिमा व्रत की महिमा
"पूषणम् च औषधी सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः"
— भगवद्गीता
अर्थात् मैं चन्द्रमा बनकर औषधियों को पुष्ट करता हूं।
"लोकानाम् तस्तु कर्तृीच मुक्तदा सदा नाम"
अर्थ: यह तिथि सम्पूर्ण लोकों को तृप्त करने वाली है और सभी दुर्गतियों का नाश करने वाली है।
शास्त्रीय श्लोकों में पूर्णिमा व्रत
"पूर्णिमायां व्रतं कृत्वा पूर्णचन्द्रनिभाननः।
सर्वपापविशुद्धात्मा स्वर्गलोकं समश्नुते॥"
— भविष्य पुराण, ब्रह्म पर्व
जो व्यक्ति पूर्णिमा के दिन व्रत करता है, वह पूर्ण चन्द्रमा के समान तेजस्वी होता है और पापों से मुक्त होकर स्वर्ग प्राप्त करता है।
"पूर्णिमायां समुद्दिष्टा व्रतराजस्य मोक्षदा।
एकादशी सम्पूर्णा या पुण्यकाल प्रदायिनी॥"
पूर्णिमा व्रत को व्रतराज कहा गया है, जो मोक्ष देने वाला है और पुण्यफलदायी है।
"पूर्णिमायां गंगास्नानं सर्वतीर्थफलप्रदम्।
कोटिकल्प समं पुण्यं लभते नात्र संशयः॥"
— स्कन्द पुराण
पूर्णिमा के दिन गंगास्नान समस्त तीर्थों के फल के समान पुण्यदायक होता है। इसमें कोई संशय नहीं।
"ब्रह्मविष्णुमहेशानां जन्मदातारमच्युतम्।
पूर्णिमासु च यः पूजेत् स याति परमां गतिम्॥"
जो व्यक्ति पूर्णिमा के दिन ब्रह्मा, विष्णु और महेश के स्वरूप अच्युत की पूजा करता है, वह परम गति को प्राप्त करता है।
"पूर्णिमायामुपवासो विष्णुपादार्चनं तथा।
सर्वकामफलं दत्ते नान्यत्तत्र विधीयते॥"
पूर्णिमा के दिन उपवास कर भगवान विष्णु के चरणों की पूजा करने से सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं। अन्य कोई विधि आवश्यक नहीं।
"पूर्णिमायां प्रदानेन अन्नदानस्य यत्फलम्।
तत्सर्वं प्राप्नुयात्पुण्यं कोटिगोप्रदानजम्॥"
पूर्णिमा के दिन किया गया अन्नदान कोटि गायों के दान के पुण्य के समान होता है।
धर्मशास्त्रों में वर्णित पूर्णिमा व्रत विधि
व्रत प्रारम्भ के नियम:
धर्मशास्त्रों के अनुसार पूर्णिमा व्रत को प्रारम्भ करने के लिए विशेष तिथियों का चयन किया जाना चाहिए।
विशेषकर:
- मार्गशीर्ष पूर्णिमा
- माघ पूर्णिमा
- चैत्र पूर्णिमा
- वैशाख पूर्णिमा
- शरद पूर्णिमा
- कार्तिक पूर्णिमा
इन तिथियों को अत्यधिक पुण्यदायक और मनोकामना पूर्ति के लिए विशेष रूप से प्रभावकारी माना गया है।
🔭 पूर्णिमा व्रत का ज्योतिषीय आधार
पूर्णिमा व्रत का आधार केवल धार्मिक या पौराणिक नहीं, बल्कि गहरे ज्योतिषीय सिद्धांतों में भी निहित है। ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक, शीतलता, भावनाओं, जल तत्व, पोषण और मानसिक संतुलन का प्रतिनिधि माना गया है। जब चंद्रमा पूर्णता को प्राप्त करता है — यानी पूर्णिमापूर्ण कलाओं से युक्त होकर अत्यंत प्रभावशाली और शुभ फलदायक होता है।
🌕 चंद्रमा और मन का संबंध
ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा हमारे मन, स्मृति, भावनाओं और मनोवृत्तियों का मुख्य स्वामी है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की शक्ति अपने चरम पर होती है, जिससे मन शांत, एकाग्र और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। अतः इस दिन व्रत एवं ध्यान करने से मानसिक विकारों से मुक्ति और आत्मिक शुद्धि की प्राप्ति होती है।
📅 चंद्र की कलाएँ और ज्योतिष
हिंदू ज्योतिष में चंद्रमा की 16 कलाएं मानी जाती हैं। ये कलाएं शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक क्रमशः बढ़ती हैं, और पूर्णिमा को ये सभी कलाएं चंद्रमा में पूर्ण रूप से विद्यमान होती हैं। इसलिए यह दिन सम्पूर्णता, परिपक्वता और मानसिक-सांस्कृतिक उन्नति का प्रतीक माना गया है।
🌌 नक्षत्रों से संबंध
पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा जिस नक्षत्र में स्थित होता है, उसका विशेष प्रभाव उस दिन की प्रकृति, पूजा और साधना पर पड़ता है। जैसे—
- आश्विनी नक्षत्र में पूर्णिमा हो तो स्वास्थ्य लाभ के लिए उत्तम मानी जाती है।
- रोहिणी में पूर्णिमा अन्न-धान्य और धन-समृद्धि के लिए श्रेष्ठ है।
- श्रवण नक्षत्र में की गई साधना विशेष रूप से ज्ञानदायिनी होती है।
🔯 कुंडली में चंद्रमा की स्थिति
किसी जातक की कुंडली में चंद्रमा जिस भाव और राशि में होता है, वह उसकी मानसिक दशा, कल्पनाशक्ति और भावनात्मक स्थिरता को दर्शाता है। पूर्णिमा व्रत करने से विशेषकर उन जातकों को लाभ होता है जिनकी कुंडली में—
- चंद्रमा नीच राशि में हो (वृश्चिक)
- चंद्रमा पापग्रहों से पीड़ित हो
- चंद्रमा चतुर्थ, अष्टम या द्वादश भाव में हो
🌟 पूर्णिमा व्रत और ग्रह-शांति
पूर्णिमा का उपवास एवं विष्णुपूजन ग्रहों की शांति हेतु भी विशेष रूप से उपयोगी माना गया है, विशेषकर चंद्र, बुध और गुरु से संबंधित दोषों को शमन करने के लिए। इससे चंद्र दोष, ग्रहण योग, चांडाल योग आदि से राहत मिलती है।
📿 ध्यान और साधना का प्रभाव
पूर्णिमा को किया गया जप, ध्यान और मंत्रोच्चारण हजारों गुना अधिक फलदायक होता है। विशेषकर इस दिन—
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
- ॐ चंद्राय नमः
- ॐ सोम सोमाय नमः
पूर्णिमा व्रत का पालन न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए, बल्कि ज्योतिषीय रूप से मानसिक संतुलन, ग्रह-शांति और जीवन की स्थिरता के लिए भी अत्यंत उपयोगी माना गया है। यह व्रत मन, शरीर और आत्मा तीनों को शुद्ध करने का माध्यम है।
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