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अजा एकादशी (भाद्रपद कृष्ण एकादशी): व्रत जो धो देता है सारे पाप और दिलाता है खोया हुआ साम्राज्य

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अजा एकादशी (भाद्रपद कृष्ण एकादशी)

अजा एकादशी (भाद्रपद कृष्ण एकादशी): व्रत जो धो देता है सारे पाप और दिलाता है खोया हुआ साम्राज्य

मंगलवार, 19 अगस्त 2025

सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है, और हर मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी अपने आप में एक विशिष्ट पहचान रखती है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को 'अजा एकादशी' के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी अपने नाम के अनुरूप ही व्रती को समस्त पापों से मुक्त कर, उसके जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का संचार करने वाली मानी गई है। धर्म शास्त्रों और ज्योतिष में अजा एकादशी का महात्म्य विस्तार से वर्णित है। आइए, इस लेख में हम अजा एकादशी के हर पहलू को गहराई से समझते हैं - इसकी व्रत कथा, पूजा विधि, ज्योतिषीय महत्व और इस दिन क्या करें और क्या न करें, इन सभी विषयों पर विस्तृत चर्चा करते हैं।

अजा एकादशी का पौराणिक महत्व और राजा हरिश्चंद्र की कथा

अजा एकादशी की महिमा को समझने के लिए हमें राजा हरिश्चंद्र की कथा का श्रवण करना होगा, जो सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वालों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं। पौराणिक काल में अयोध्या पर सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र का शासन था। वे अपनी सत्यवादिता, दानशीलता और धर्मपरायणता के लिए तीनों लोकों में विख्यात थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और सम्पन्न थी।

एक बार महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र की सत्यवादिता की परीक्षा लेने का निश्चय किया। उन्होंने स्वप्न में राजा से उनका संपूर्ण राज्य दान में मांग लिया। अगले दिन जब महर्षि विश्वामित्र अयोध्या पहुंचे, तो राजा हरिश्चंद्र ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपना संपूर्ण राज-पाट उन्हें सौंप दिया। विश्वामित्र यहीं नहीं रुके, उन्होंने राजा से दान की दक्षिणा के रूप में 500 स्वर्ण मुद्राएं और मांगीं।

राज्य दान कर चुके हरिश्चंद्र के पास अब कुछ भी शेष नहीं था। दक्षिणा चुकाने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी महारानी तारामती और पुत्र रोहिताश्व को एक ब्राह्मण के हाथों बेच दिया और स्वयं एक चांडाल के सेवक बन गए, जो श्मशान घाट पर मृतकों के दाह संस्कार का कर वसूलता था। इस कठिन परिस्थिति में भी राजा हरिश्चंद्र ने सत्य का मार्ग नहीं छोड़ा।

वर्षों बीत गए, राजा हरिश्चंद्र चांडाल के दास के रूप में जीवन व्यतीत करते रहे। वे अपने अतीत को याद कर और अपनी वर्तमान दुर्दशा पर अत्यंत दुखी थे। एक दिन इसी चिंता में डूबे हुए राजा की भेंट महर्षि गौतम से हुई। राजा ने उन्हें अपनी पूरी व्यथा सुनाई। राजा हरिश्चंद्र की करुण कथा सुनकर महर्षि गौतम का हृदय द्रवित हो गया।

उन्होंने राजा को इस संकट से मुक्ति का मार्ग सुझाते हुए कहा, "हे राजन! तुम शोक मत करो। तुम्हारे भाग्य से आज से सात दिन बाद भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की 'अजा' नाम की एकादशी आएगी। तुम विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे और तुम्हें तुम्हारा खोया हुआ सब कुछ पुनः प्राप्त हो जाएगा।"

राजा हरिश्चंद्र ने महर्षि गौतम के बताए अनुसार भाद्रपद कृष्ण एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से किया। उन्होंने दिनभर निराहार रहकर भगवान विष्णु का पूजन किया और रात्रि में जागरण कर भजन-कीर्तन किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र के सभी पाप नष्ट हो गए।

व्रत के पूर्ण होते ही स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे और पुष्पों की वर्षा होने लगी। राजा ने अपने समक्ष ब्रह्मा, विष्णु, महेश और देवराज इंद्र आदि देवताओं को खड़ा पाया। उन्होंने देखा कि उनका मृत पुत्र रोहिताश्व, जिसे एक सर्प ने डस लिया था, जीवित हो गया है और उनकी पत्नी महारानी तारामती राजसी वस्त्रों और आभूषणों से सुसज्जित खड़ी हैं।

यह सब अजा एकादशी के व्रत का ही प्रभाव था। महर्षि विश्वामित्र द्वारा रची गई माया समाप्त हो गई और राजा हरिश्चंद्र को उनका राज्य पुनः प्राप्त हो गया। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि अजा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति घोर से घोर संकट से भी मुक्त हो जाता है और उसे अपने पुण्य कर्मों का फल अवश्य प्राप्त होता है।

अजा एकादशी 2025: तिथि और पारण का समय

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 18 अगस्त 2025, सोमवार को शाम 05:22 बजे से होगा और इस तिथि का समापन 19 अगस्त 2025, मंगलवार को दोपहर 03:32 बजे होगा। उदयातिथि के अनुसार, अजा एकादशी का व्रत 19 अगस्त 2025, मंगलवार को रखा जाएगा।

व्रत का पारण (व्रत खोलने का समय) 20 अगस्त 2025, बुधवार को सुबह 05:53 बजे से सुबह 08:29 बजे के बीच किया जाएगा।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में ही किया जाना चाहिए।

अजा एकादशी की पूजा विधि: कैसे करें भगवान विष्णु को प्रसन्न?

अजा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए विधि-विधान से पूजा करना अत्यंत फलदायी माना गया है।

व्रत का संकल्प: दशमी तिथि की शाम को सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण न करें। एकादशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें और स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा घर में या किसी शांत और पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और व्रत का संकल्प लें।

पूजन सामग्री: भगवान विष्णु की पूजा के लिए पीले फूल, पीले फल (जैसे केला, आम), पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर का मिश्रण), तुलसी दल, अक्षत (बिना टूटे चावल), चंदन, धूप, दीप, और नैवेद्य (भोग) की व्यवस्था करें।

पूजा की प्रक्रिया:

  • सर्वप्रथम भगवान विष्णु का गंगाजल से अभिषेक करें।
  • इसके बाद उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं और फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं।
  • भगवान को पीले वस्त्र अर्पित करें।
  • चंदन का तिलक लगाएं, अक्षत, पीले फूल और तुलसी दल चढ़ाएं। ध्यान रहे कि एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए, इसलिए एक दिन पहले ही तोड़कर रख लें।
  • धूप और दीप जलाकर भगवान की आरती करें।
  • भगवान विष्णु को फलों और मिष्ठान का भोग लगाएं। भोग में तुलसी दल अवश्य शामिल करें।
  • पूजा के दौरान "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का निरंतर जाप करते रहें।
  • विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना इस दिन विशेष रूप से लाभकारी होता है।
  • दिनभर निराहार या फलाहार व्रत का पालन करें।
  • रात्रि में जागरण कर भजन, कीर्तन और भगवद् कथा का श्रवण करें।
  • द्वादशी के दिन प्रातःकाल पुनः भगवान विष्णु की पूजा करें, ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें। इसके बाद स्वयं पारण के शुभ मुहूर्त में व्रत खोलें।

अजा एकादशी का ज्योतिषीय महत्व

ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक व्रत और त्योहार का संबंध ग्रहों की चाल और उनके प्रभावों से होता है। अजा एकादशी का व्रत भी ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।

ग्रहों की अशुभता से मुक्ति: पुराणों के अनुसार, एकादशी का व्रत करने से ग्रहों के अशुभ प्रभावों में कमी आती है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह कमजोर या पीड़ित है, तो इस व्रत को करने से उसके नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।

मानसिक शांति: एकादशी का व्रत सीधे तौर पर मन और शरीर पर प्रभाव डालता है। इस दिन जल और अन्न का त्याग करने से शरीर का शोधन होता है और मन में सात्विक विचारों का उदय होता है, जिससे मानसिक शांति और एकाग्रता में वृद्धि होती है।

आर्थिक संकटों से छुटकारा: ज्योतिष में भगवान विष्णु को धन, वैभव और सुख का कारक माना गया है। अजा एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति को आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।

शनि और राहु-केतु के प्रभाव: भाद्रपद मास शनिदेव के प्रभाव क्षेत्र में भी आता है। इस मास में भगवान विष्णु की आराधना करने से शनि के अशुभ प्रभावों से भी राहत मिलती है। साथ ही, राहु और केतु जैसे छाया ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव भी कम होते हैं।

अजा एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें?

अजा एकादशी का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है।

क्या करें:

  • ब्रह्मचर्य का पालन: दशमी तिथि से लेकर द्वादशी तिथि तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
  • सात्विक आहार: दशमी के दिन सात्विक भोजन ग्रहण करें।
  • दान-पुण्य: अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें। इस दिन किए गए दान का कई गुना फल प्राप्त होता है।
  • भगवद् भक्ति: दिन का अधिकांश समय भगवान विष्णु के ध्यान, मंत्र जाप, और कीर्तन में व्यतीत करें।
  • सत्य बोलें: इस दिन भूलकर भी झूठ न बोलें। सत्य का आचरण करें।
  • शांत रहें: क्रोध, ईर्ष्या और किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचारों से दूर रहें।

क्या न करें:

  • अन्न का सेवन: एकादशी के दिन चावल और किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण करना वर्जित माना गया है।
  • तामसिक भोजन: लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा और किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन का सेवन न करें।
  • दूसरे का अन्न: इस दिन किसी दूसरे के घर का अन्न ग्रहण करने से बचना चाहिए।
  • बाल और नाखून काटना: एकादशी के दिन बाल और नाखून काटना अशुभ माना जाता है।
  • क्रोध और कलह: घर में किसी भी प्रकार का कलह या विवाद न करें।
  • वृक्षों को हानि पहुंचाना: इस दिन पेड़-पौधों को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचानी चाहिए, विशेषकर तुलसी के पौधे को।

मोक्ष और समृद्धि का मार्ग है अजा एकादशी

अजा एकादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि आत्म-संयम, शुद्धि और ईश्वर के प्रति समर्पण का पर्व है। यह हमें सिखाती है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने से बड़ी से बड़ी विपत्ति भी टल जाती है। राजा हरिश्चंद्र की कथा इस बात का ज्वलंत उदाहरण है।

जो भी मनुष्य पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इस व्रत को करता है, वह न केवल इस लोक में सुख और समृद्धि प्राप्त करता है, बल्कि मृत्यु के पश्चात उसे वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। यह एकादशी अश्वमेध यज्ञ के समान फल देने वाली मानी गई है। तो आइए, इस पुण्यदायी अजा एकादशी पर हम भी व्रत, पूजन और सत्कर्मों के द्वारा भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करें और अपने जीवन को धन्य बनाएं।

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